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पत्थर के इंसान भाग - 6




जेलर मुकुन्द ने बहन मिताली की आप बीती जान्हवी को बताई जेलर ने जान्हवी को बताया कि वह मूल रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रहने वाले है ।

उनका परिवार पाकिस्तान के वर्तमान शहर करांची में रहता था पिता सुधांशु का अच्छा खासा व्यवसाय था मैं मिताली और माँ सुचिता कुल चार लोंगो का परिवार था बहन मिताली की उम्र मात्र पांच वर्ष एव मेरी उम्र छ सात वर्ष के मध्य रही होगी ।

भारत अंग्रेजी सत्ता के अधीन था पूरे भारत मे आजादी की लड़ाई जारी थी बड़ी मुश्किल से आजादी का समय आया और भारत का बंटवारा हो गया हिंदुस्तान एव पाकिस्तान में बंटवारे से पूर्व ही धार्मिक उन्माद चरम पर था बावजूद बहुत शौहर्द पूर्ण बातावरण तब तक बना रहा जब तक बटवारे का निर्णय नही हो गया उसके बाद धार्मिक उन्माद ने भयानक रूप धारण कर लिया और पीढ़ियों से एक दूसरे के साथ रहने वाले एक दूसरे के ही दुश्मन बन गए किसी भी  बाहरी शत्रु से तो निपटा जा सकता है अपनो से नही ।

पिता जी ने भारत मे रहने का फैसला किया और जब भारत के लिए हम लोग निकले तब माहौल शांत था लेकिन ज्यो ही चलने की तैयारी होने लगी दंगाईयो के समूह ने हमारे परिवार के साथ कुछ अन्य लोंगो को भी घेर लिया इतना खौफनाक दौर था जिसको याद करने मात्र से रूह तक कांप जाती है ।

दंगाईयो ने घरों में आग लगा दिया और जो भी सदस्य थे उन्हें या तो जिंदा या मारने के उपरांत आग के हवाले कर दिया प्रशासन या सुरक्षा नाम की कोई चीज नही थी जैसे जंगल का पशुवत राज हो ।

माँ पिता जी को दंगाईयो ने तत्काल मार दिया साथ ही साथ जितने भी लोग थे उन्हें भी कुछ बच्चे ही बचे थे जिन्हें दंगाइयों ने छोड़ा तो नही था मारने ही वाले थे कि उन्ही दंगाईयो के दूसरे समूह वहां आकर अन्य इलाकों में चलने लगे बचे बच्चों को उन्होंने बड़ी बेरहमी से काट डाला मिताली कटने वालो में पहली थी ।

मैं दूसरे दंगाई समूह के आने से पहले ही भीड़ से दहसत और भय के मारे कुछ दूरी पर बहुत सकरी गली में चला गया बहन मिताली की मरते समय आखिरी चीख सुनी गली के सामने से दंगाईयो का समूह आगे निकल गया मैं विल्कुल अकेला कब मौत निगल जाय के भय में उसी गली में डरा सहमा खड़ा रहा ।

एक पागल इंसान जो दंगो से पहले भी मैले कुचैले कपड़े पहने घूमता रहता हम लोग उसे अपने बालपन में चिढ़ाते और वह पत्थर उठा कर दौड़ा लेता उंसे दंगे से या कुछ लेना देना नही था ना ही जीवन से लगाव एव मौत से डर उसके पास कुछ था भी नही ना ही उसे मुल्कों के सीमाओं के बटवारे का कोई अंदाजा या इल्म था ना वह हिन्दू लगता ना मुसलमान पेट किसी तरह भरने के बाद कही भी सड़क के किनारे गटर गंदगी कही भी पड़ा रहता। 

सम्भवतः इसीलिये दंगाइयों ने उसे नही मारा उसकी नज़र मेरे ऊपर पड़ी मैं भी उंसे तंग करता और चिढ़ाता जब वह मेरे करीब आने लगा तब मुझे विश्वास हो गया कि वह मुझसे सारे हिसाब बराबर करेगा मैं सहमा हुआ मेरे पास कोई विकल्प था भी नही वह मेरे पास आया और जुबान पर उंगली रखते हुए चुप रहने का इशारा किया और जबरन मेरा हाथ पकड़कर गली से बाहर खींच लाया और खिंचते खिंचते वह मुझे कराची रेलवे स्टेशन पर खड़ी ट्रेन में उठा कर फेंक दिया दिन में गयरह बारह बजे दंगाईयो द्वारा  सार्वजनिक नर संघार करने के बाद रात्रि के तीन बजे विल्कुल सुन सान जैसे कोई रात का वीरान श्मसान हो पूरी सड़के मोहल्ले खाली थे बचा ही नही था कोई जो बचे थे वे करांची से भारत जाने के लिए जानवरो को तरह एक दूसरे पर लदे थे ।

सबने बहुत कुछ खोया था बटवारे के हादसे से बहुत कम लोग ही थे जो परिवार के साथ बच गए हो खैर पता नही क्या सूझी उस पागल को जो हमे कचरे की तरह फेंक दिया किसी तरह ट्रेन चली दिन में  हमे मालूम नही कितने बजे करीब दो तीन दिन बाद भारत के पंजाब में थे मैं मरणासन्न ।

कोई खोज खबर लेने वाला नही तभी एक रेल कर्मी की नजर मुझ पर पड़ी और वह मुझे देख कर स्टेशन के उच्चाधिकारियों को बताया तब स्टेशन मास्टर गुरुबक्स सिंह ने मुझे उठवाया और सरकार के हवाले कर दिया कुछ दिन हल्का फुल्का इलाज करने के बाद मुझे करतार सिंह अपने घर घरेलू काम करने हेतु दिल्ली लेकर आये उनका छोटा सा काम ताला बनाने का था ।

मै उनके साथ ताला बनाने का काम दिन में करता रात को हम और करतार किसी न किसी गुरुद्वारे में रात गुजारते कन्धे पर तालों को लटकाए मोहल्ले घूमते बहुत आमदनी नही होती फिर करतार का काम चल जाता।



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3 Comments

Radhika

02-Mar-2023 09:19 PM

Nice

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shahil khan

01-Mar-2023 06:49 PM

nice

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Gunjan Kamal

17-Dec-2022 08:53 PM

शानदार भाग

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